PHOENIX

Add To collaction

Jaane Kahaa ??? The Revolution भाग 16

अपडेट:16

किशोरीलाल, बंसी और राजेश्वरीदेवी साथ बगी मे बैठकर हवेली की और निकल पड़े। रास्ते मे किशोरीलाल ने किशोरीलाल ने राजेश्वरीदेवी को और राजेश्वरीदेवी ने किशोरीलाल को अपनी अपनी बाते बता दी। किशोरीलाल ने आख़िर मे बंसी को पुछा,”बंसी विक्रम की शादी क्रिष्ना से हो जाये तो तु खुश है ना।”

“भैया, मेरी खुशी का सवाल ही नही उठता, और वैसे भी जब बच्चा बाबा का ही है तो शादी भी बाबा से होगी तभी क्रिष्ना की जिन्दगी संभव है, वरना वो अकेली कब तक भटकती रहेगी।” बंसी ने उत्तर दिया।

बाद मे कोई बातचीत नही हो पाई, सब सोच मे डुबे रहे। परमात्मा ने कैसे संजोग पैदा किये थे की एक बाप को समजाना था की उसका एक बेटा भी है और वो भी 2 साल का। क्या विक्रम मानेगा या इन्कार करेगा?, अगर मानेगा तो शादी के लिये हा  बोलेगा?,अगर ना बोला तो क्या होगा और अगर हा बोला तो जिंदगीभर क्रिष्ना का साथ निभायेगा या ऐसे ही जिन्दगी चलती रहेगी। । क्रिष्ना का आगे क्या होगा सब की चिंता का मुख्य विषय यही था।

सब हवेली पर पहुच गये। न चाहते हुये भी दोपहर के देढ बज चुके थे। जाते वक़्त बंसी परेशान था की अगर देर हुइ तो बाबा की गाली सुन नी पड़ेगी, लेकिन अब शायद वो बेफिक्र था, क्यूकी एग्रीमेन्ट की सारी बाते जान ने के बाद शायद उस मे भी विक्रम के साथ बात करने की हिम्मत आ चुकी थी।
हवेली मे कदम रखते ही सब ने देखा तो विक्रम ड्रोइंग रूम मे बैठा था। बंसी, किशोरीलाल और राजेश्वरीदेवी को थोड़ी जिजक जरुर मेहसुस हुई। 

विक्रम ने हसकर सब का स्वागत किया और सब वहा बैठ गये। किशोरीलाल ने आख़िर मौन तोड़ते हुए कहा,”वीकी, तू सुबह जल्दी उठता नही तो सोचा की थोड़ी सैर अपने आप ही कर ले और हम लोग थोड़ा सा घुम आये।”

विक्रम ने हा मे सिर हिलाया बोला,”अच्छा कीया” फिर कुछ पल के बाद अचानक बोला,”एग्रीमेन्ट का अच्छी तरह अभ्यास कर लिया की.पी.?”

बीजली गीरी हो ऐसा सन्नाटा छा गया। सब के मूह कुछ पल के लिये गीर गये फिर किशोरीलाल ने कहा,”हा वीकी जब तुने नही बताया आज तक तभी आज ये नौबत आई की वकिलबाबू ने मूज़े रुबरु बुला लिया।“ कुछ पल के बाद किशोरेलाल फिर से बोला,”और इस मे भी ग़लती तेरी है, तुने आजतक क्यू मूज़े नही बताया की मामला इतना गंभीर बन चुका है ? मूज़े आज इतने सालो के बाद सबकुछ पता चल रहा है और वो भी बाहरवालो से। तु तो मेरा सब से पक्का दोस्त है और तु ही मूज़े तेरे ही प्रोब्लेम के बारे मे नही बतायेगा तो और कौन बतायेगा ? और अब तो प्रोब्लेम भी इतना बढ चुका है की हमारे हाथ मे शायद कुछ नही रहा।”

“तुजे क्या बताता मै ?” विक्रम बोला,”क्या यही की मेरे बाप को मेरे मे कोई इंटरेस्ट ही नही रहा। मेरे पर कोई विश्वास नही रहा। मै आज जो भोगत रहा हु उसके पिछे कौन ज़िम्मेदार है ? एक बिन मा के बच्चे को मिलने तक की फुरसत मेरे बाप को नही थी और उपर से मेरे खिलाफ ऐसा एग्रीमेन्ट कर दिया की मई दल दल की ठोकरे खाता फिरु । मेरे बारे मे बंसी की अच्छी रेपोर्ट हो तो ही मेरा ही पैसा मुज को किसी से मांगना पड़े। इस से बेहतर है की मै अलग से ही अपना व्यापर करू। मै क्यू किसी के सामने भीख मांगता फिरु ? मै क्यू खोखली लाइफ एन्जोय करू ? क्या मुज मे इतना भी दम नही की अपना अलग अस्तित्व बना सकु ? इसीलिए मैने तुजे सबकुछ बताना सही नही समजा था।”

“नही वीकी तु शायद अंकल को ग़लत समज रहा है।” किशोरीलाल ने दलील की।

“कोइ वकीलात मत कर मेरे बाप की के.पी., मेरे अलवा कोई मेरे बाप को सही नही जानता यार और हा मैने आत्महत्या करने से अपना अलग अस्तित्व साबित करना उचित समजा शायद इसीलिये ये नौबत आई है की आज हम सब धर्मसंकट मे है।” इतना कहकर विक्रम बैठ गया। लेकिन अभी भी गुस्से से वो हाफ रहा था।


कुछ् देर खामोश रहने के बाद किशोरीलाल ने कहा,”देख वीकी, कुछ तो ऐसा होगा ना की अंकल को ऐसा डीसीसन लेना पड़ा।”

“कुछ नही यार, तु ही बता अगर तु मेरी जगह होता तो क्या करता ? अगर अंकल तेरे साथ ऐसा करते तो क्या तु सहन करता ?” विक्रम अभी भी गुस्से मे था।

“मैं होता तो कभी ऐसी हरकत ही नही करता की मेरे पिता को ऐसा कठोर निर्णय लेना पड़े।” किशोरीलाल ने आखिर कटु जवाब दे ही दिया।

“कहने की बाते है केपी, ये वो आग है की जीसे लगे वो ही जाने की कैसी आग है। “ विक्रम ने मुह बिगाडते हुये कहा।

“ठीक है आगे तु क्या करना चाहता है बोल ?” किशोरीलाल ने पुछा।

“क्या करूँगा, मेरे हाथो मे कुछ है ही नही, मेरी ज़िंदगी तो आप लोगो के हाथो मे है ना, जैसा चाहे खेल लो इस से।” विक्रम ने कहा।

“वीकी, देख जो हो गया वो तो हो गया, आगे क्या कर सकते है वो सोच।” किशोरीलाल ने कहा।

“क्या कर सकता हु, केपी, देख गुलामी कभी मूज़े राज नही आयेगी, हा इतना वादा ज़रूर करता हु की कभी किसी को नुकसान नही पहुचाना चाहता” इतना कहकर एक पल रुककर विक्रम आगे रुखी आवाज़ मे बोला,”लेकिन तब तक, जब तक कोई मेरे रास्ते मे ना आये केपी।”

“वीकी, इस का मतलब अगर कोई तुजे रोके या टोके तो तु उसको छोडेगा नही, यही ना ? चल ये बात है तो सब से पहले मेरे से ही शुरुआत कर। अगर मेरी मौत भी चाहे तो मै देने को तैयार हु और वादा करता हु अपने आपस के मामले मे तेरी भाभी भी कुछ नही कहेगी। लेकिन मेरी सिर्फ़ एक ही शर्त है की अब से तेरी ज़िंदगी सिर्फ़ आनेवाली पीढीयो के लिये समर्पित होनी चाहिये।” किशोरीलाल ने खड़ा हो के उची आवाज़ मे चेलेंज दिया।

“इस का मतलब केपी, आप लोग मुज़े हत्यारा समजते हो क्या? और इस से तो मैं ही अंकल, आंटी और सुनंदा का हत्यारा हु ये भी साबित हो गया ना।” इतना कहकर विक्रम पलट गया।

“मैने कब कहा वीकी की तु खुनी है, हत्यारा है। अब अगर तु पहले ये सबकुछ बता देता तो क्या ऐसी नौबत आती। आज तो ये हालात है की मुजे सबकुछ बाहर से सुन ने को मिल रहा है। मेरा अपना भाई जैसा दोस्त मेरे से ही सबकुछ छिपाता फिर रहा है। अगर ऐसी ही हालत है तो मई मै कैसे तेरे मामले मे सही फ़ैसला कर सकता हु, बोल ?” किशोरीलाल ने फिर दलील की।

“मगर ऐसी नौबत आइ ही क्यू केपी की मेरी लाइफ के बारे मे किसी और को फ़ैसला या दखल करनी पड़े ?”विक्रम ने पलटकर फिर एक सवाल किया।

“देख वीकी तेरी लाइफ स्टाइल ही इतनी भयानक और ख़तरनाक है की कोई भी आँखे बंध कर बता सकता है की तू नोर्मल लाइफ नही जी रहा है। मै यहा तेरी जासुसी नही करने आया, बल्कि मै तुज से बड़ी उम्मीद लेकर यहा आया था। मैं उस गिरनरवाले बाबा की वाणी सुनकर उसे सच्चा साबित होते हुये देख रहा हु।” किशोरीलाल ने विक्रम की बाहे पकड़कर निर्दोश भाव सेअकहा।

“ओ मदद करने आता है, या उम्मीद जगाने आता है वो ऐसे किसी वकील से मिलने नही जाते। यु मेरे बिना सब को पुछते हुए नही फिरते दोस्त।” विक्रम ने आँखो मे आँखे डालकर पुछा। उसके चेहरे पर स्पष्ट नाराजगी दिखाई दे रही थी।

“वीकी अगर तू मुज़े कुछ नही बताना चाहता तो मत बता। आज से तेरे बारे मे मै कुछ जान ने की कोशिश नही करूँगा। मै ये कभी भी नही जान ना चाहता की मेरे पिताजी और माताजी और बहन की मौत कैसे हुई।” किशोरीलाल ने भी आँखो मे आँखे डालते हुए जवाब दिया और फिर आगे कहा,”देख वीकी, तु ये तो जानता है की मै और बंसी मि. सेन के पास गये थे, लेकिन मै गया नही था उसने मुज़े बुलाया था और जब तक मै उस से नही मिला तब तक तो तेरी ऐसे हालत के बारे मे मै कुछ भी नही जानता था। तेरी ही दौलत के लिये तु तो ठीक लेकिन तेरे दो साल की मौन से आज ये हालत है की मेरे हाथो मे भी कुछ नही रहा। जब तक मेरे माता-पिता और बहन के बारे मे स्पष्ट ना हो जाये तब तक हमे हाथो मे हाथ रखकर बैठना होगा। और दूसरा किस ने तुजे कहा की हम लोग सिर्फ वकीलबाबु से ही मिलने गये थे?”     

थोड़ी देर यू ही आँखो मे आँखे डाले रहने के बाद विक्रम जोर से हस पड़ा और कहा,”कमाल है केपी, मेरा शहर, मेरी हवेली, मेरा वकील और मुज़े ही मालूम ना हो की मेरे बारे मे कहा कहा खौज और इंकवायरी हो रही है ? इतना तो तू समज ही सकता है की मेरे आदमी कहा कहा नही होंगे।” 

किशोरीलाल ने उसी अंदाज मे आंखो मे आंखे रखकर मुस्कुराते हुए कहा,”वीकी, कितनी गीरी हुई तेरी सोच है ? यार मै तो वकिल के कहने पर गया था। लेकिन तुजे बताने वाले ने ये नही बताया की तेरी भाभी कहा गयी थी ?”

अब विक्रम को होश आया की राजेश्वरीदेवी भी वहा बैठी है। वो तुरंत शांत हो गया और वही सोफे पर बैठ गया। थोड़ी देर खामोश बैठने के बाद बोला,”भाभी के बारे मे मै ऐसा सोच भी नही सकता केपी, हमारी बातचीत मे भाभी को हम दूर ही रखे। क्युकि वो इस मामले मे कुछ भी नही जानती।”

अब पहेलीबार राजेश्वरीदेवी खड़ी हुई और बोली,”विक्रम भैया एक पति कभी कोई बात अपनी पत्नी से छुपा नही सकता और अगर ऐसा हो तो वो पत्नी के शक के दायरे मे आ जायेगा। और मुज़े मेरे पति पर इतना तो गर्व् ज़रूर है की वो मुज से कुछ बात छुपाते नही है।”

विक्रम ने हसी मे बात टाल दी। राजेश्वरीदेवी ने ये देखकर और कहा,”आप सच नही मानेंगे लेकिन जब आप की बारी आयेगी तो आप भी वैसा ही करेंगे जैसा आप के दोस्त करते है।”

विक्रम ने हसकर जवाब दिया,”माफ करना लेकिन भाभी मेरी शादी होगी तो ना।”
 
अब किशोरीलाल भी हस पड़ा और बोला,”शादी तो अब तुजे करनी ही पड़ेगी यार।”

“लगता है तुम लोग मेरा ब्लेकमेइल शुरू कर रहे हो। देख केपी, तू कीतना भी ज़ोर आजमा ले, लेकिन मै कभी जुकनेवालो मे से नही हु।” विक्रम ने नज़र उठाकर बोल दिया।

“तेरी आँखो के सामने सिर्फ़ दौलत और तेरे पिता की नाराजगी के सिवा कुछ आता ही नही दोस्त। अगर तू शादी नही करेगा तो तेरी बेटी से मेरे बेटे की शादी कैसे होगी और हमदोनो समधी कैसे बनेंगे दोस्त।” किशोरीलाल ने हसकर कहा।

“माफ करना भाभी ये केपी दिन मे भी ख्वाब देखता है” फिर हसी मे उडाकर विक्रम् बोला,”शादी तो दूर मेरी तरफ कोई लड़की देखना भी नही चाहेगी। और मान लो अगर किसी को आप राजी भी कर लो तो जब उसे मेरी हालत का पता चलेगा की मेरे पास उसे देने के लिये फुटी कोडी भी नही है और मेरी ज़िंदगी आप लोगो के हाथो क़ैद है तो ऐसे ही मेरी शादी टूट जाएगी। बच्चे तो बहुत दूर की बात है।”

“वीकी, तू हर बात को दौलत के तराजु मे क्यू तोलता है, क्या दुनिया मे प्यार नाम की कोई चीज़ ही नही है।” किशोरीलाल ने फिर दलील की।

“ये प्यार व्यार सिर्फ़ खोखली बाते है मेरे दोस्त्, इस मतलबी दुनिया मे कोई किसी से क्या प्यार करेगा। यहा तो सिर्फ़ लोग मतलब और अपने फायदे के लिये ही ज़िंदा है।” विक्रम रुखे आवाज़ मे बोला।

“क्या ये बंसी अपने फायदे के लिये यहा है ? वीकी।” किशोरीलाल ने बंसी का हाथ पकड़कर बोला।

“ और नही तो क्या उसकी बहन सलामत रहे इसी वजह से तो वो यहा मेरी जासुसी करते फिरता है। वरना यहा क्या उसकी जरुरत है“ विक्रम ने फिर जवाब दिया।

“फिर भी उसकी बहन सलामत है क्या?” किशोरीलाल ने विक्रम की दुखती रगो पे हाथ रख दिया।

“वो तो विदेश मे सेइफ ही है ना, इसीलिए तो ये यहा पड़ा रहता है। उसे कहा फिकर है किसी की। बहन को मेरे बाप ने सेइफ कर दिया और इसे मेरी जासुसी करने की सेलेरी जो मिलती है। फिर उसे क्या तकलीफ़ और उसकी बहन, (जोर से हसते हुये बोला) उस की तो मुज से भी अच्छी किस्मत है उस की, किसी और के पैसो से किसी और के घर मे आराम से रह रही है।" विक्रम ने फिर रुखे स्वर मे दलील की।

“अच्छा, उसकी बहन आराम से ज़िंदगी काट रही है, ये तुजे पता है ? क्या तेरे जासुस ने तुजे ये सुचना दी है की क्रिष्ना आराम की ज़िंदगी काट रही है?” किशोरीलाल ने उची आवाज मे कहा।

“सब बात जासुस से पुछी नही जाती ।” विक्रम ने फिर रुखा जवाब दिया ।

``और अगर जासुस को उस के पिछे भेजा होता ना तो अच्छा होता की तुजे खबर तो मिलती की कैसे वो दल दल की ठोकरे खा रही है और वो भी तेरे हाथो से बरबाद होने के बाद।`` किशोरीलाल ने अब विक्रम् को कंधे से पकड़कर उठाकर बोला। विक्रम कुछ समजा ही नही

``क्या बक रहा है केपी ? मैने क्या किया मैने तो उसे देखा तक नही`` विक्रम की आवाज ढीली हो        गयी।

``इतना.. ही... नही... वीकी.... उस...की... गोद... मे... तेरा... बच्चा... भी... है...`` एक एक शब्द अलग कर के उस पर वजन देते हुए जैसे किशोरीलाल ने विक्रम पे बीजली गिरा दी।

``जुठ, मै कभी मिला ही नही उसे, कहा है वो ?`` विक्रम ने अब धीरे स्वर से पुछा।

```एक लड़की अपनी इज़्ज़त गवाकर कभी जुठ नही बोल सकती वीकी, और एक मा को अपने बच्चे के बाप के बारे मे ज़रूर पता होता है दोस्त। यही इसी शहर मे कीसी कोने मे तेरे दो साल के बच्चे को लेकर तेरे अत्याचार से बचने के लिये छुप छुप के जीवन काट रही है और उसे सिर्फ़ यही चाहिये की सिर्फ़ उसका बेटा ज़िंदा रहना चाहिये।`` किशोरीलाल ने फिर उचे स्वर मे विक्रम की आँखो मे आँखे डालते हुये कहा।

विक्रम चुप हो गया। उसके गले की आवाज़ धीमी हो गयी और कुछ पल तक वो कुछ नही बोल पाया। थोड़ी देर तक सन्नाटा छा गया हवेली पर।
 
थोड़ी देर के बाद किशोरीलाल धीरे से विक्रम के पास आया और उसे हाथ पकड के सोफे पर बिठाया और खुद अमीन पे घुटनो से बैठते हुये उसका हाथ पकड़कर बोला,”देख वीकी, मेरे दोस्त, मै तुजे कोई तुजे ताना मारने या तेरी जासुसी करने नही आया। लेकिन क्रिष्ना अपने भैया को नही बता सकी की उसके बच्चे का बाप कौन है तब बंसी को हमे यहा बुलाना पड़ा। बंसी तेरी जासुसी नही तेरी सेवा कर रहा है दोस्त तेरी सेवा। वो एक लाचार भाई है। तेरी ही शर्त थी ना की तू क्रिष्ना से शादी करेगा और बाद मे तूने ही क्रिष्ना से कहा की तू सुनंदा को चाहता है। सोच इतना सुन ने के बाद भी उस लडकी ने सिर्फ़ तेरे प्यार के खातिर जब तू नशे मे था फिर भी कुछ ना सोचते हुये अपने आप को तेरे हवाले कर दिया था। आज भी उसे तेरे से कुछ नही चाहिये। वो सिर्फ़ डर रही है की अगर तुजे पता चलेगा तो तू ना जाने क्या करेगा और ये मानेगा भी की नही की वो बच्चा तेरा है।”

विक्रम ने मूह पलटकर पुछा,”सच ही तो है, इस की क्या गेरेंटी है की मै ही उस बच्चे का बाप हु।”

“चल इतना तो मानता है की तु उसके पास गया था और तेरे ना चाहते हुये भी तूने उसकी इज़्ज़त के साथ खेला” किशोरीलाल अब मिठे स्वर मे बोला।

विक्रम कुछ नही बोला सिर्फ़ आसपास देखता  रहा।

“मेरी दोस्ती का वास्ता दोस्त। देख मै वादा करता हु अगर मेरा नाम उस एग्रीमेन्ट मे आया तो मै उस एग्रीमेन्ट से तुजे आज़ाद कर दूँगा। और अगर मेरा नाम नही आया तो भी मई अपने माता-पिता और बहन की मृत्यु के बारे मे कुछ ऐसा करूँगा की उसका कुछ आगे केइस नही बन पायेगा। लेकिन मेरी सिर्फ़ एक शर्त है क्रिष्ना को अपना ले मेरे दोस्त। एक लड़की की दुआ लगेगी और देखना तेरा जीवन कैसे हराभरा हो जायेगा। मूज़े सिर्फ़ तेरी बेटी मेरी बहु के रूप मे चाहिये मेरे दोस्त। बोल इतना करेगा मेरी दोस्ती की खातिर ?” किशोरीलाल ने विक्रम का दाया हाथ अपने सिर पर रखकर भारी आवाज़ मे पुछा।

बंसी ने भी हाथ जोड़कर विक्रम के पाव के पास बैठकर बोला,”बाबा, क्रिष्ना जुठ नही बोल रही है। उसे अपना लिजिये आप जो भी कहेंगे मै करने को तैयार हु। आप कहोगे तो मे हवेली छोडकर चला जाउंगा।”

फिर भी विक्रम ने कुछ जवाब नही दिया।

अब राजेश्वरीदेवी आगे आई और वो भी अपने पति के पास बैठ गयी और बोली,”विक्रमभैया, अगर मूज़े अपनी भाभी मानते हो तो सुनिये, मैने खुद क्रिष्ना से बात की है। वो आप से जी जान से प्यार करती है। इसीलिये उसने अपने आप को आप के हवाले कर दिया था। फिर भी वो नही चाहती की आप उन से शादी करे। लेकिन ये परमात्मा की शायद इच्छा है की आप दोनो की शादी हो और हमारे बच्चे की शादी से कोई ऐसी आत्मा इस प्रुथ्वी पर आये जिन से से कुछ ना कुछ ज़रूर होनेवाला है। हमे सिर्फ़ कुदरत का साथ देना है और कुछ नही।”

फिर भी विक्रम खामोश रहा तो बंसी रोने लगा और धीरे धीरे खड़ा हुवा और अपने आँसू खुद ही पोछते हुये थोड़े दूर खड़ा रह गया।

“देख् वीकी किसी मजबुर इन्सान की हाय लेगा तो कभी सुखी नही रह पायेगा। उस बेचारे के सामने देख जो उम्र मे हम सब से बड़ा होकर भी तेरी गुलामी कर रहा है। कोइ भाई अपनी बहन की बरबादी देख सकता है क्या? उसने तेरे से कभी कुछ भी नही मांगा है मेरे दोस्त। कम से कम उसके सामने तो देख।” किशोरीलाल ने बंसी के सामने देखते हुये फिर विक्रम को समजाने की कोशिश की। 

आख़िर विक्रम खड़ा हुवा और दो कदम चल के सब से उल्टा खड़ा हुवा और फिर खामोशी तोड़ते हुये बोला,”केपी, आप लोग मूज़े इमोश्नल ब्लेक्मैल कर रहे हो। । मै मान लेता हु की मै जरुर क्रिष्ना के पास गया था और हमारे बीच नशे की हालत मे हुवा भी होगा। लेकिन ये कैसे तुम लोगो ने मान लिया की वो बच्चा मेरा ही है। और मान लो अगर मेरा है तो क्या क्रिष्ना एक ऐसे आदमी से शादी करेगी जो खुद गुलाम       है।”

“कौन है की तु गुलाम है, वीकी तू अपनी सोच बदल दे। देख ये हालात तो तेरी जिन्दगी देखते हुये अंकल ने खड़े किये थे, परंतु अब सब कुछ हमारे हाथ मे है। तु भगवान् की कृपा तो देख की तुजे निर्णय लेने की जरुरत भी नही। तु जब अपने लडके को देखेगा तो सबकुछ भूल जायेगा दोस्त। सबकुछ् दौलत से नही खरीदा जा सकता है दोस्त। कम से कम उस मासुम बच्चे के लिये तो सुधर जा और हमारी बातो पर विश्वास कर ले।” किशोरीलाल ने लाचार आवाज़ मे दलील की।

“लेकिन ये साबित कौन करेगा की वो मेरी ही औलाद है, सोहनी परिवार का वारिश है” विक्रम ने पलटकर चुभती हुइ आवाज़ मे पुछा।

“तु उसे देख तो ले एक बार तेरी हर शर्त का जवाब तुजे तेरे बच्चे की आँखे देगी वीकी।” किशोरीलाल ने जवाब दिया।

विक्रम ने कुछ जवाब नही दिया। किशोरीलाल ने कहा,”बंसी जा क्रिष्ना को यहा ले के आ और बच्चे को साथ मे ले आना।”

बंसी ने तुरंत विक्रम को देखा, जैसे उसके हुकम की राह देख रहा हो। किशोरीलाल ने फिर बोला,”अरे वीकी की तरफ मत देख जा जल्दी क्रिष्ना को लेके आजा,  आज देखता हु की वीकी की जीद के आगे एक बाप पिघलता है की नही। और जब तक क्रिष्ना नही आ जाती तब तक खाना नही खायेंगे इसिलिये बंसी जल्दी    दौड ।” 

बंसी तुरंत बाहर के लिये दौडा मानो आज उसकी दौड मे जुनुन भी शामिल था। उसके कदमो मे उसकी बहन की ज़िंदगी की खुशी शामिल थी। 

किशोरीलाल सामने सोफे पर बैठ गया और विक्रम यू ही खडा रहा।

आज किस्मत ने उस पर एक ऐसा वार किया था की उसके बचने की कोई उम्मीद नही थी। विक्रम की समज मे कुछ नही आ रहा था की वो क्या कहे और क्या करे ? उसने मौन रहना ही ठीक समजा और कुदरत की करामत को देखने के लिये मानसिक रूप से तैयार होने लगा। लेकिन उसे क्या पता था की कुदरत क्या चाहती है?????


दोपहर के तीन बजने को आये थे। । नन्हा सा जय रो रहा था इसीलिये विक्रम के कहने पर राजेश्वरीदेवी ने अकेले थोडा खाना खाया और जय को सुलाने उपर के रूम मे चली गयी। अब विक्रम और किशोरीलाल दो ही दिवानखने मे बैठे हुये थे। लेकिन किशोरीलाल ने विक्रम को छेडना मुनासिब नही समजा। 

ऐसे ही एक घंटा और बीत गया और बाहर से बगी की आवाज आई, थोड़ी देर मे बंसी अकेला अंदर दाखिल हुवा और बोला,”बाबा, मै क्रिष्ना को ले आया हु।”

किशोरीलाल जट से खड़ा हुवा और बाहर गया और तुरंत वापिस आया और पुछा,”कहा है क्रिष्ना?”

“जी भैया वो पहले अकेले मे बाबा से मिलना चाहती है” बंसी ने नज़र नीची करते हुये कहा।

“ठीक है मै भी पहले अकेले ही उसे मिलना चाहता हु। कहा है क्रिष्ना?” विक्रम ने भी उची आवाज़ मे बोल  दिया।

“जी बाबा वो मेरे क्वार्टर मे है हम लोग उपर चले जाते है बाद मे वो आयेगी अगर आप की आज्ञा हो तो।।” कहकर सहमा सहमा बंसी धीरे स्वर मे बोलकर वही खड़ा रहा।

“क्यू? यहा क्यू नही आती ?  लोगो के बीच मे डर लगता है क्या?” विक्रम ने फिर गुमान से सवाल      किया।

“नही वीकी, बात सही है पहले आप दोनो अकेले मे ही बात करो यही अच्छा रहेगा। हम सब बाद मे आयेंगे, चलो बंसी हम उपर चलते है।” कहकर किशोरीलाल उपर जाने लगा।

“आप चलिये भैया मै क्रिष्ना को बोलकर पिछे से जाउंगा।” कहकर बंसी बाहर चला गया।

किशोरीलाल ने उपर आने के बाद देखा की जो राजेश्वरीदेवी सो रही थी, करीब आधे घंटे की गहरी नींद ले चुकी थी वो दरवाजा खुलने की आवाज़ से उठी और किशोरीलाल को देखते ही उठ खड़ी हुई। किशोरीलाल ने उसे सब बात बताई और इतनी ही देर मे बंसी पिछे के दरवाजे से आया और उसके हाथ मे क्रिष्ना का बच्चा था। वो सो रहा था इसीलिए राजेश्वरीदेवी ने उसे अपनी गोद मे लेकर जय की दाई और सुला दिया और तीनो वहा बैठ गये। थोड़ी देर वहा खामोशी छा गयी। 
************

इधर क्रिष्ना ने दिवानखाने मे प्रवेश किया। क्रिष्ना ने राजस्थानी चोली और कब्जा पहना हुवा था। ब्राउन कलर की चोली और डार्क ब्राउन कलर  का कब्जा। चुनरी छाती मे दबाये रखी थी। विदेश जाने के बाद और एक बच्चे की मा हो जाने के बाद विक्रम ने जब विदेश मे देखा था उस से भी ज़्यादा खुबसुरत बन चुकी थी क्रिष्ना। विदेश की ठंडी ने उसकी त्वचा को गोरी बना दी थी, जब की बड़ी बड़ी आँखे कही गमगीनी मे खोइ हुई थी। विक्रम और क्रिष्ना की नज़र एक हुई।

विक्रम दिवानखने के बीच एक सोफे के पास यु ही करीब एक घंटे से खड़ा था। दोनो हाथ की अदब से और मूह पे कठोर चेहरा बनाये हुये विक्रम खड़ा था। क्रिष्ना दरवाजे से अंदर आ के थोड़ी देर एक कोने के पास खड़ी हुई। दोनो मे से कोई करीब 5 मीनी
ट तक कुछ नही बोला। फिर क्रिष्ना ने ही मौन तोड़ा और कहा।

“आप ने मूज़े बुलाया था लेकिन मै आप से अकेले मे पहले मिलना चाहती थी।”

विक्रम कुछ नही बोला बस यू ही अकडु की तरह खड़ा रहा। उसकी आँखे तीर की तरह क्रिष्ना को चुभ गयी। फिर भी हिम्मत कर के उसने आगे कहा,”देखिये, मूज़े कुछ नही चाहिये, ना तो मै आप की लाइफ मे दखल देने आई हु और न ही आप को बदनाम करने के लिये। आप से सिर्फ़ इतनी रीक्वेस्ट है की मूज़े या मेरे बच्चे को माफ़ कर दिजिये।”

“बंसी तो कहता है की वो बच्चा मेरा है और तू बता रही है की तेरा है।” विक्रम ने वही अंदाज़ मे पुछा।

क्रिष्ना ने नज़र जुकाते हुये शर्म से लाल होकर कहा,”दोनो बात सच्ची है।”

“क्या बकवास कर रही है तू क्रिष्ना, मेरा बच्चा कैसे हो सकता है ? मै ये बात कैसे मान लु और इतने साल मे विदेश मे तुने क्या गुल खिलाये होंगे ये किसे पता।” विक्रम ने क्रिष्ना को चुभा ही दिया।

“मूज़े पता था की आप ऐसा ही कहेंगे लेकिन एक मा को अपने बच्चे का बाप ज़रूर याद रहता है विक्रम बाबू और मे जिस्म बेचनेवाले मे से नही हु। मै सिर्फ़ आप के कहने पर प्रिन्स को जिस्म दिखाया करती थी। लेकिन मेरे बच्चे की सौगंध आप के सिवा आज तक किसी ने भी मेरे जिस्म को छुआ नही है।” क्रिष्ना ने आँखे उठाकर तेज नजरो से विक्रम को देखा।

“वो मै क्या जानु क्रिष्ना की बच्चा कैसे आया ?” विक्रम ने फिर वोही अंदाज़ से वेफिक्र से पुछा।

क्रिष्ना की आँखो मे अब आँसू आने शुरू हुए,”मै जानती थी की आप ऐसा ही कहोगे, इसीलिए तो मै यहा आना ही नही चाहती थी। वो आप के दोस्त ने मूज़े यहा बुलाया वरना मै तो कब का बच्चे को लेकर यहा से निकल जाती। मूज़े बच्चे का ख़याल है, मेरा नही। वरना कब की मर चुकी होती। आप को मालूम नही उस रात मेरे साथ क्या हुवा था। आप नशे की हालत मे मै बेहोश हुई तब तक मूज़े नौचते रहे। सारा बिस्तर खुन से भर गया था। उपर से ऐसी ही हालत मे वहा बिना कपडो के मूज़े अकेला छोड़ के आप चले गये। वहा के नौकर का मे शिकार होती रह गयी। वो तो अच्छा हुवा की उसकी बेटी आ गयी वरना उसी रात मे मर जाती और मर जाती तो अच्छा होता कम से कम आज का दिन नही देखना पड़ता। जिस्म की सारी पीडा से मूज़े करीब ढाई महीने के बाद मुक्ती मीली। मुज़े वहा होस्पिटल मे ले आया गया था। मैने आज तक किसी से ये बात नही की है। जब अच्छी हुई तो पता चला की मेरे पेट मे ढाई महीने का बच्चा पल रहा है और क्या करती मै उसे जन्म देने के सिवा। मेरी हालत ही इतनी नाजुक थी की और कोई मुज़े नौचने भी आता तो मै ज़िंदा ही नही बचती।” 

एक ही झटके मे इतना बोलकर क्रिष्ना हाफने लगी और उसकी आँखो से ऐसे ही अश्रुधारा बहने लगी। तेज सासो से उसकी छाती जोरो से उछल रही थी और आँखे बड़ी हो चुकी थी। बदन थोड़ा सा कापने लगा था। पाव डगमगाने लगे थे। बडी मुश्किल से वो खड़ी रह सकती थी। । सहारे के लिए विक्रम जहा खड़ा था उसके सामने वाले सोफे पर अपना हाथ टिकाया और खड़ी रही।

उसकी तेजाबी आवाज़ सुन ने के बाद कुछ समय तक तो विक्रम बोल ही नही पाया लेकिन उसका इगो ऐसे जुकनेवालो मे से नही था ना। आख़िर उस ने कहा,”देखो क्रिष्ना, मै कुछ सुन ना नही चाहता। हो सकता है की उस रात नशे की हालत मे मैने तेरे साथ वो सबकुछ किया। ये भी हो सकता है की शायद बच्चा उसी रात की वजह से मेरा हो लेकिन इसका मतलब ये तो नही की मैने तेरे साथ कोई ज़बरदस्ती की। तुने भी तो अपनी मर्ज़ी से अपना जिस्म दिया होगा ना। वरना तू चिल्ला भी सकती थी और कोई भी तुजे बचा सकता था तो ये परिस्तिथी ही नही आती ना।” विक्रम ने थोड़ी आवाज़ नीची ज़रूर की लेकिन अभी उसका शयतानी रुप खड़ा ही था।

क्रिष्ना ने रोती आँखो से फिर विक्रम को देखा और बोला,”विक्रम बाबू पुरुष् हो ना,आसानी से बाते बोल सकते हो। कम से कम मैने तो होश मे अपने जिस्म को आप के हवाले कर दिया था, लेकिन आप को शायद अंदाज़ा है, की नशे की हालत मे आप ने किस किस को लुटा होगा?” 

बस इतना ही सुनकर विक्रम का दिमाग का पारा चढ गया और गुस्से मे बोला,”चुप कर क्रिष्ना,मै कोई जिस्म लुटनेवाला भेडिया नही हु। जिस ने भी मेरे साथ रात गुजारी है अपने मरजी से। मै किसी पर रेप नही      करता।”

“आप को क्या मालूम विक्रमबाबू की साथ मे सोनेवाली की मजबूरी क्या हो सकती है। हो सकता है की रुपयो की जरुरत हो, हो सकता है की आप से कुछ लालच हो या फिर हो सकता है की मेरी तरह अपने बाप और आप के आप के षडयंत्र का शिकार हो, या मेरी तरह आप को प्यार करती हो” क्रिष्ना ने एक एक शब्द तेज करते हुये कहा और उस की तीर जैसी तेज आवाज़ विक्रम की छाती की आरपार उतर गयी। वो आवाज हवेली मे शायद गुंज उठी थी।

इतनी उची आवाज़ सुनकर राजेश्वरीदेवी, बंसी और किशोरीलाल रूम से बाहर आये और उपर बाल्कनी से दिवानखाना स्पष्ट दिखाई दे रहा था। किशोरीलाल ने दोनो को वही रुकने का इशारा किया और वही से खड़ा रहकर सब देखने लगे। विक्रम और क्रिष्ना अपनी बातो मे इतना उलजे हुये थे की दोनो को पता ही नही था की उपर से ये तीनो अब उसको देख रहे है।

“शट..अप यु । मुज पर ऐसा गंदा इल्ज़ाम लगा रही है। तेरी क्या मजबूरी थी की तूने मेरे साथ रात गुजारी बोल ? क्या मैने तुजे मजबूर किया था ये सब करने के लिये ? ये तू अपने लालची बाप से जा के पुछ् की उसकी क्या चाल थी। मैने तो सिर्फ़ उसे सहारा दिया था। सिर्फ़ एक एग्रीमेन्ट किया था लेकिन मैने कभी भी तुजे हाथ भी नही लगाया वरना कई मौके आये थे जब तू खुद नशे मे होती तो मे भी तेरा सबकुछ पहले भी लुट सकता था। लेकिन मैने ऐसा कुछ नही किया। बस उस रात थोड़ा नशा ज़्यादा हो गया और तू तो सीधा सारा इल्ज़ाम मेरे सर पर ही थोप रही है।” विक्रम ने भी चिल्लाते हुये जोरदार जवाब दिया।

क्रिष्ना की आँखे अब सुलगने लगी थी। वो आगे आग बरसाती हुइ बोल उठी,”विक्रमबाब, शायद आप की पूरी ज़िंदगी की किताब एक एग्रीमेंट ही है जो कभी बनता है तो कभी टूट ता है और वो भी सिर्फ़ आप की मर्ज़ी पर ही। पहले मै ऐसी नही थी जो उस रात मे दिख रही थी। वरना मै जानती हु की ऐसी वैसी लड़की पे आप नज़र नही उठाते।” क्रिष्ना ने फिर वार किया।

“थोड़े साल फोरेन क्या रही तू अपने आप को बहुत सुंदर समजने लगी हो क्या? तेरे जैसी बहुत सारी आज कल मेरे साथ शादी के सपने देख रही है। ये ज़रूर उस बंसी के बच्चे की चाल है। । हरामखोर मेरा ही खाता है और उपर से निमकहरामी करता है।” विक्रम ने फिर उची आवाज मे जवाब दिया। 

बंसी का नाम सुनते ही क्रिष्ना वही घुटनो पे बैठ गयी और रो पड़ी,”नही विक्रमबाबू आप को जो कहना हो मूज़े कहिये लेकिन मेरे भैया को कुछ मत कहिये। उसे तो आज तक मैने कुछ नही बताया। भैया को तो इस बच्चे के बारे मे भी कुछ नही बताया मैने।”

“तु जुठ बोल रही है। उसने ही ये चाल चली है क्रिष्ना। साले सबलोग मुज़े ब्लेकमेइल करने पर तुले हुए हो। लेकिन इतनी आसानी से मै हार नही मानता। तेरे भैया को तो शायद मै ज़िंदा नही छोडुंगा क्रिष्ना।” कहकर विक्रम ने अपना हाथ जोर से दीवार पर लगाया। 

विक्रम के हाथ से खुन बहने लगा। विक्रम की आंखे अब अंगारे बरसा रही थी लेकिन क्रिष्ना घुटनो पर बैठी हुई थी। उस का ध्यान नही था और उपर से किसी को ये अंदाज़ा नही था। अरे खुद विक्रम को भी अपने हाथो पर उतर आये खुन का ख़याल नही था। 

क्रिष्ना खुल्ले मन से रो पड़ी और रो रो कर कहने लगी,”नही विक्रमबाबू मेरे भैया ने आप की बहुत सेवा की है। उसे तो कुछ पता भी नही था की हमारे बीच क्या हुवा है। मैने इस बच्चे के बाप के बारे मे भी उन को नही बताया तो आप के दोस्त को बुलाना पड़ा। । भैया निर्दोष है। आप जानते नही आप की खातिर उसने शादी भी नही की है। कोइ नही जानता की उसने प्रतिज्ञा ली है की वो कभी शादी नही करेंगे और आप को कभी भी अकेला नही छोडेंगे। यही एग्रीमेनंट था ना मेरे भैया और आप के पिताजी के बीच। मेरे भैया ने कभी एग्रीमेंट नही तोड़ा और आप ने अपना एग्रीमेंट तोड़ दिया और मूज़े बरबाद करके छोड दिया ।” 

अभी भी विक्रम का गुस्सा सातवे आसमान मे था वो इधर उधर शेर की तरह घुमने लगा लगा और जोरो से अपने एक हाथ से दूसरे हाथ की मुठ्ठी को मारता रहा। 

“सालो दोनो भाइबहन ने मेरा जीना हराम कर रखा है। मैने साले कौन से पाप किये थे की ऐसे बाप की औलाद हु जिसे गैरो के हाथो मे मूज़े बेच रखा है। साला जीने के लिये भी पुछना पड़ता है की मै सांस लू की नही” अब विक्रम की आँखो से आग और पानी बरसने शुरू हो चुके थे। 

शायद आज विक्रम अपनी सारी ज़िंदगी की भडाश निकाल रहा था। एक बिन मा के बच्चे की आहे आज उछल उछलकर बाहर आ रही थी। 

फिर विक्रम बडबडाते हुये उची आवाज़ मे बोला,”साली पूरी दुनिया को गोली मार देनी चाहिये। जहन्नम मे जाये साले सब। एक ने साला जीना हराम कर रखा है, दूसरा इमोशनल ब्लेकमैल करने पर तुला हुवा है और वहा तीसरे ने तो साली पूरी ज़िंदगी ही दाव पे लगा रखी है। सली इतनी मुसीबत कम थी की साली रां__ तू तेरे बच्चे को लेकर यहा आ गयी। । मर जाती ना कही, मेरे सिर पर वार करने यहा क्यू आइ?” 

अब विक्रम होश खोकर यु ही अनाप शनाप बके जा रहा था। 

लेकिन उसे मालूम नही था की जो आखरी शब्द उसने बोले किशोरीलाल ने कुछ पकड़ लिया था की एक जीना हराम करनेवाला बंसी है, दूसरा इमोशनल ब्लेक्मैल  करनेवाला या नी वो खुद किशोरीलाल है, लेकिन ये तीसरा कौन है जिस ने विक्रम की सारी ज़िंदगी दाव पे लगा दी है ?????
 
क्रिष्ना रोये जा रही थी और । बंसी और राजेश्वरीदेवी की आँखो मे भी क्रिष्ना के इस हाल पर रोना आ रहा था। लेकिन एक किशोरीलाल अडग था और उसने धीरे स्वर मे कहा,”आज अंदर के शयतामन विक्रम को बाहर आ जाने दो तो ही कल एक नये विक्रम का जन्म होगा और सबकुछ सही होगा।”

क्रिष्ना रोते हुये थोड़ी शांत हुई की अपने पैरो पर खड़ी हुई और उसने देखा की विक्रम के हाथो से थोड़ा खुन बह रहा है वो तुरंत दौडकर कर वहा गयी और विक्रम की हथेली अपने मूह मे ले ली और चुसने लगी। विक्रम ने एक ही झटके मे उसे दूर धक्का दिया और क्रिष्ना सोफे पर गीर गयी। अब विक्रम का ध्यान अपने खुन पर गया लेकिन उसका गुस्सा अब भी वैसा ही था और उसने सुलगती आँखो से क्रिष्ना को  देखा।

क्रिष्ना बोली,”विक्रमबाबू आप को खुन निकल आया है।”

“साली, तुम लोगो की वजह से एक दिन मेरा सारा खुन निकल आयेगा और तभी तुम सब को शांती मिलेगी।” विक्रम के स्वर मे अब खर्राश आ चुकी थी। 

क्रिष्ना फिर खड़ी हुई और हाथ जोड के विक्रम से माफी मांगी ।,”विक्रमबाबू,प्लीज मूज़े कुछ नही चाहिये। मैने पहले भी आप को बता दिया था की मै आप को बदनाम करने नही आई। मै मानती हु की मैने ही भूल की थी उस दिन। इसीलिए मै अपना बच्चा लेकर यहा से चली जाती हु। आप के दोस्त को भी मै मना लुंगी। लेकिन मेरे भैया की कोई ग़लती नही है। मेरे भैया देवता है। उसे माफ़ कर दो विक्रम बाबू। वरना इस जिंदगी मे मेरे भैया को आप के सहारे के सिवा और कोई नही है। मैं आप को वचन देती हु की कभी यहा नही आउंगी और अपना मूह आप को तो क्या अपने भैया तक को भी कभी नही दिखाउंगी। लेकिन मेरे भैया को माफ़ कर दो और उसे अपना लो बस यही मेरी आखरी बिनती है आप से।” 

विक्रम ने गुस्से से अपना मूह फेर लिया और उसकी आँखो से गुस्से और लाचारी से पानी निकल आया था। क्रिष्ना ने धीरे से जुककर उस जमीन को छुकर सिर पर लगाया और धीरे धीरे से दिवानखने से बाहर जाने के लिये कदम उठाये......और...

तभी एक आवाज़ आई,”ठेहरो क्रिष्ना।”

उस आवाज़ मे इतना वजन था की क्रिष्ना के कदम अपने आप ही रुक गये। एक तपस्वीनी की तरह दिख रही थी राजेश्वरीदेवी और अपने पति के सामने एक बार देखकर वो नीचे उतर आई और विक्रम के सामने खड़ी रह गयी और विक्रम उसकी नजरो का सामना नही कर पाया क्यूकी राजेश्वरीदेवी की आँखो से अंगारे बरस रहे थे। चन्द मीनिटो के बाद वो तेज आवाज मे बोलने लगी

“क्रिष्ना तू कही नही जायेगी लेकिन मेरे पास रहेगी। जुनागढ मे, हम साथ मिलकर दोनो बच्चो को बड़े करेंगे। एक बाप अपना फर्ज् ज़रूर भूल सकता है, लेकिन एक मा कभी भी अपने बच्चे के लिये फर्ज् नही भूल सकती। मै तेरी हिम्मत को सलाम करती हु की इतना सुन ने के बाद भी तुज मे ज़िंदा रहने की ताकत है, वरना इतना सुनते ही तेरी जगह कोई और होती तो कब की मर जाती।” राजेश्वरीदेवी की वाणी आग बरसा रही थी। 

विक्रम, क्रिष्ना और बंसी तो क्या खुद किशोरीलाल स्तब्ध था क्यूकी राजेश्वरीदेवी का ये स्वरूप उसने भी कभी नही देखा था। जैसे कोई देवी प्रकट हो के गर्जना कर रही हो ऐसा दिख रहा था। 

विक्रम स्तब्ध हो के राजेश्वरीदेवी का ये नया अवतार देख रहा था। राजेश्वरीदेवी आगे बढी और क्रिष्ना का हाथ पकड़ के अंदर ले आई और फिर विक्रम के सामने देखकर कहा,”। एक बात सुन लो अगर आप के दोस्त ही आप के दुश्मन है तो ज़िंदगी मे आप की बरबादी बहुत जल्दी ही आ रही है। ये बात इसीलिये नही कर रही हु की वो एग्रीमेंट मे आप के दोस्त और मेरे पति का नाम है, बल्कि परमात्मा कभी भी अत्याचार करने वालो पर रहम नही करता। दूसरा अगर आज आप अपनी होनेवाली बीवी और बच्चे को गाली देकर और धक्का देकर निकाल दिया तो ये मत समजिये की आप के पाप पर पर्दा गीर जायेगा। । ये ही बच्चा बड़ा होकर आप के सामने अपने मा के साथ हुये अत्याचारो का हीसाब पूछने खड़ा हो जायेगा। हा इतना तो हम लोग ज़रूर कोशिश करेंगे की बच्चे को ऐसे संस्कार दे की वो आप से हक़ मांगने यहा नही आयेगा। लेकिन बदले मे आप कभी भी उसका मूह नही देख पायेंगे और जिन्दगीभर अपने आप को कोसते रहोगे।”

एक… एक … शब्द जैसे कमान से नीकला हुवा तीर था और वहा खड़े सब की छाती के आरपार जा रहा था। विक्रम का गुस्सा तो ठीक लेकिन राजेश्वरीदेवी की आँखे देखकर ही उसकी आँखे फटी जा रही थी। उस का गला बिल्कुल सुख गया था और सासे बिल्कुल टूट रही थी। पसीने से तरबतर चेहरा और शरीर बिल्कुल ठंडा पड चुका था। दो दो देवीयो के शब्दो के वार पड चुके थे आज उस पर। सिर्फ़ इतना ही सुन ने के बाद वो नज़दीक के सोफे पर धब्ब से बैठ गया और इधर उधर देखने लगा। उसकी आँखे उसके वश मे नही थी और आखो से लगातार आँसू की धारा बह रही थी। 

और कोई आगे बोले उसके पहले दोनो बच्चे के रोने की आवाज़ उपर से आई और राजेश्वरीदेवी और क्रिष्ना दोनो अपने अपने बच्चे की पुकार सुनकर उसको लेने के लिये दौड पड़ी। 

सब लोग की नजरे उपर ही थी लेकिन विक्रम की नजर नीची थी, उसकी समज मे नही आ रहा था की इस वक़्त वो क्या करे? वो बिल्कुल अपने आप मे नही था और अचानक राजेश्वरीदेवी के हमले से जैसे एक सैनिक पर वार हुवा था और वो घाव इतना गेहरा था की उस सदमे से बाहर आने मे टाइम ज़रूर ।लगनेवाला था। लेकिन आख़िर ये सब प्यादे थे किस्मत के मारे। सब से बड़ी परमात्मा की जादुगरी होती है, जिस ने अपनी करामत से विक्रम की गोद मे एक बच्चा तो डाल ही दिया था। लेकिन साथ मे कई मुसिबते भी लिख दी थी। एक पामर मनुष्य क्या समज सकता है विधाता की गहरी चाल को की आगे क्या लिखा है………………कौन जाने कहा??????

   22
10 Comments

Horror lover

26-Jan-2022 11:37 PM

Kya suspens se bhari h khani

Reply

PHOENIX

27-Jan-2022 04:22 PM

Thanks

Reply

Arshi khan

09-Jan-2022 12:37 PM

रोमांच से भरपूर एक उपन्यास।

Reply

PHOENIX

09-Jan-2022 08:16 PM

या सो तो है । आप का धन्यवाद। पढ़ते रहिये।

Reply

Shivani Sharma

09-Jan-2022 09:51 AM

Are Kya bolu is khani ke bare me, itni saspence se bhri khani. Sb ult palt guys kdiyan jodte jodte. Khan kaun si kdi Jodi Kon si hai can't define.

Reply

PHOENIX

09-Jan-2022 08:15 PM

😊 इसे ही तो सस्पेन्स और थ्रिलर कहते है। धन्यवाद आप का। पढ़ते रहिये। बहुत जल्द अगला अपडेट आ रहा है।

Reply